नमस्ते दोस्तों! आज हम बात करेंगे एक ऐसे मुद्दे पर जो मध्य पूर्व में लगातार गरमाया हुआ है और जिसके बारे में जानना आपके लिए बहुत ज़रूरी है – इजरायल-लेबनान संघर्ष। यह सिर्फ़ दो देशों के बीच की लड़ाई नहीं है, बल्कि इसके तार पूरे क्षेत्र की स्थिरता से जुड़े हैं। इस लेख में, हम इस गंभीर और संवेदनशील मुद्दे को हिंदी में विस्तार से समझेंगे, इसके इतिहास से लेकर वर्तमान स्थिति तक, और जानेंगे कि इसका आम लोगों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर क्या असर पड़ रहा है। तो चलिए, बिना किसी देरी के, इस महत्वपूर्ण विषय में गहराई से उतरते हैं!

    इजरायल-लेबनान संघर्ष की पृष्ठभूमि और इतिहास

    तो, सबसे पहले बात करते हैं कि इजरायल-लेबनान संघर्ष की जड़ें कितनी पुरानी हैं और ये कैसे शुरू हुआ। यार, ये सिर्फ़ कल की बात नहीं है; इसकी लंबी और जटिल ऐतिहासिक जड़ें हैं जो दशकों पहले तक जाती हैं। असल में, 1948 में इजरायल के गठन के बाद से ही इस क्षेत्र में तनाव बना हुआ है। इजरायल और लेबनान के बीच सीमाएं हमेशा से विवाद का विषय रही हैं, और इन सीमाओं के आर-पार अक्सर संघर्ष देखने को मिलता रहा है। मुख्य रूप से, 1970 के दशक के बाद से, फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) और बाद में हिज्बुल्लाह जैसे गुटों की उपस्थिति ने इस संघर्ष को और भड़काया है। लेबनान ने 1975 से 1990 तक एक विनाशकारी गृहयुद्ध भी झेला है, जिसके दौरान विभिन्न क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शक्तियाँ इसमें शामिल थीं। इस गृहयुद्ध ने लेबनान को एक कमजोर राज्य बना दिया, जिससे गैर-राज्य अभिनेताओं, जैसे हिज्बुल्लाह, को एक मजबूत पैर जमाने का मौका मिला। हिज्बुल्लाह, जिसे अक्सर इजरायल का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है, एक शिया राजनीतिक और सैन्य संगठन है जो लेबनान में बहुत प्रभावशाली है। यह संगठन इजरायल के खिलाफ़ लगातार सक्रिय रहा है और लेबनान के दक्षिणी हिस्सों में इसकी मजबूत पकड़ है। 1982 में इजरायल ने लेबनान पर आक्रमण किया था, जिसका उद्देश्य PLO को बेदखल करना था, और यह कब्जे 2000 तक चला। इस दौरान हिज्बुल्लाह की शक्ति काफी बढ़ गई। फिर, 2006 में, एक बड़ा युद्ध हुआ जिसमें इजरायल और हिज्बुल्लाह के बीच भयंकर लड़ाई हुई, जिसके परिणामस्वरूप दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ और लेबनान के बुनियादी ढांचे को भी बहुत नुकसान पहुँचा। इस युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें सीमा पर शांति बनाए रखने का आह्वान किया गया, लेकिन तनाव कभी पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ। इजरायल लेबनान में हिज्बुल्लाह की सैन्य मौजूदगी को अपनी सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा मानता है, खासकर हिज्बुल्लाह के पास मौजूद रॉकेटों और मिसाइलों के जखीरे को। दूसरी ओर, लेबनान के कई लोग हिज्बुल्लाह को इजरायल के खिलाफ़ अपने देश का रक्षक मानते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ लेबनानी सेना की पहुँच कम है। इसके अलावा, इजरायल के गठन के बाद से लेबनान में कई फिलिस्तीनी शरणार्थी भी रह रहे हैं, जिनकी स्थिति भी इस पूरे संघर्ष को और जटिल बनाती है। यार, ये सब मिलकर एक ऐसा पेचीदा जाल बुनते हैं जिसमें हर कदम पर खतरा और अस्थिरता है। इस तरह, इजरायल-लेबनान संघर्ष की पृष्ठभूमि में सीमा विवाद, फिलिस्तीनी प्रश्न, क्षेत्रीय शक्तियाँ (जैसे ईरान और सीरिया), और हिज्बुल्लाह जैसे गैर-राज्य अभिनेताओं की भूमिका शामिल है, जो इसे मध्य पूर्व के सबसे ज्वलंत मुद्दों में से एक बनाता है। यह समझना बहुत ज़रूरी है कि यह सिर्फ़ ज़मीन का झगड़ा नहीं है, बल्कि पहचान, सुरक्षा और प्रभुत्व की लड़ाई भी है। उम्मीद है कि ये पृष्ठभूमि आपको इस जटिल स्थिति को समझने में मदद करेगी, मेरे दोस्तों।

    वर्तमान स्थिति: नवीनतम घटनाक्रम और तनाव

    अब बात करते हैं इजरायल-लेबनान सीमा पर वर्तमान स्थिति की, जो कि सच कहूँ तो, काफी तनावपूर्ण और अस्थिर है। जब से इजरायल और हमास के बीच गाजा में लड़ाई शुरू हुई है, इजरायल-लेबनान सीमा पर भी तनाव बहुत बढ़ गया है। गाजा में चल रहे युद्ध का सीधा असर लेबनान पर पड़ा है, क्योंकि हिज्बुल्लाह ने इजरायल के खिलाफ़ अपनी गतिविधियों को तेज़ कर दिया है। यार, आप सोच भी नहीं सकते कि वहां हालात कितने नाजुक हैं। हिज्बुल्लाह, जो ईरान समर्थित एक शक्तिशाली समूह है, अक्सर इजरायली ठिकानों पर रॉकेट और मिसाइलें दागता रहता है। इसके जवाब में, इजरायल भी लेबनानी क्षेत्र में, खासकर दक्षिणी लेबनान में, हवाई हमले और तोपखाने से गोलाबारी करता है। ये हमले अक्सर हिज्बुल्लाह के ठिकानों को निशाना बनाते हैं, लेकिन कभी-कभी निर्दोष नागरिक और नागरिक बुनियादी ढांचे भी इनकी चपेट में आ जाते हैं, जो कि बहुत ही दुखद है। इन हालिया तनावों के कारण सीमावर्ती इलाकों से हजारों लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े हैं। इजरायल में, उत्तरी समुदायों को खाली कराया गया है, और लेबनान में भी सैकड़ों गाँव प्रभावित हुए हैं, जहाँ लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ा है। यार, ये विस्थापन अपने आप में एक बड़ी मानवीय त्रासदी है। दोनों तरफ के लोग डर और अनिश्चितता के माहौल में जी रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय लगातार दोनों पक्षों से संयम बरतने और तनाव कम करने की अपील कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र शांति सेना (UNIFIL) भी सीमा पर तैनात है और स्थिति पर नज़र रख रही है, लेकिन उसकी भूमिका भी सीमित है जब दोनों पक्ष सीधे तौर पर एक-दूसरे पर हमला कर रहे हों। गाजा युद्ध ने इस स्थिति को और भी भड़का दिया है। हिज्बुल्लाह खुद को फिलिस्तीनी कारण का समर्थक मानता है और इजरायल पर दबाव बनाने के लिए सीमा पर हमले कर रहा है। इजरायल के लिए, यह दो मोर्चों पर युद्ध लड़ने जैसा है, एक गाजा में और दूसरा लेबनान सीमा पर। इजरायली अधिकारी बार-बार चेतावनी दे रहे हैं कि अगर हिज्बुल्लाह ने अपने हमले बंद नहीं किए, तो वे लेबनान के खिलाफ़ एक पूर्ण पैमाने पर सैन्य अभियान शुरू कर सकते हैं। यह एक बहुत ही खतरनाक बयान है, जो क्षेत्र को एक बड़े युद्ध की कगार पर धकेल सकता है। लेबनान, जो पहले से ही एक गहरे आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है, ऐसे किसी भी बड़े सैन्य संघर्ष का सामना करने की स्थिति में नहीं है। एक बड़ा युद्ध लेबनान को पूरी तरह से तबाह कर सकता है और इसकी पहले से ही नाजुक अर्थव्यवस्था को और भी ज्यादा नुकसान पहुँचा सकता है। अमेरिकी और यूरोपीय राजनयिक सक्रिय रूप से इस क्षेत्र में यात्रा कर रहे हैं, संघर्ष विराम और डी-एस्केलेशन के तरीकों पर चर्चा कर रहे हैं। वे लेबनान सरकार, इजरायल और हिज्बुल्लाह के साथ बातचीत कर रहे हैं ताकि स्थिति को नियंत्रण में लाया जा सके। लेकिन, मेरे दोस्त, राजनयिक प्रयास हमेशा आसान नहीं होते जब युद्ध की आग इतनी भड़की हुई हो। वर्तमान स्थिति यही दर्शाती है कि मध्य पूर्व में शांति कितनी भंगुर है और कैसे एक संघर्ष दूसरे को जन्म दे सकता है। दोनों पक्षों के बीच अविश्वास गहरा है और छोटी सी चिंगारी भी एक बड़ी आग लगा सकती है। हम बस उम्मीद कर सकते हैं कि समझदारी और कूटनीति जीत हासिल करे, और इस क्षेत्र में जल्द से जल्द शांति बहाल हो। यह सब कुछ सिर्फ़ अखबार की सुर्खियां नहीं हैं, मेरे दोस्त, बल्कि लाखों लोगों के जीवन की सच्चाई है जो हर दिन मौत के साये में जी रहे हैं।

    हिज्बुल्लाह की भूमिका और उसका प्रभाव

    आइए, अब बात करते हैं हिज्बुल्लाह की भूमिका और उसके प्रभाव की, क्योंकि इजरायल-लेबनान संघर्ष में यह संगठन एक केंद्रीय किरदार है। यार, हिज्बुल्लाह कोई मामूली ग्रुप नहीं है; यह लेबनान में एक बहुत शक्तिशाली और जटिल इकाई है, जो एक राजनीतिक पार्टी, एक सामाजिक सेवा प्रदाता और एक सैन्य बल तीनों के रूप में काम करती है। इसका शाब्दिक अर्थ है